श्री माणिक प्रभु
हुमणाबादी माणिक प्रभु, हे तो केवळ दत्त प्रभु |
अवतारिक तो जन्म म्हणुनि, बालवयातचि लीला सुरू |
योगीराज तो गुरुराज तो, त्रिभुवनानंदी अद्वैती रमे |
सगुणी परि गुणातीत तो, अभेदपणे निरंजनी वसे |
भक्तांसी कल्पद्रुम सदोदित, निरालंबी परिपूर्ण असे |
श्री गुरू माणिक जय गुरू माणिक, मुखी गाता तोषितसे |
अवधूताचा अवतार तरी, राजेशाही थाट अन् वेश |
अनंतानंत पदे रचिली, भक्ति प्रेमाचा सुंदर उपदेश |
काव्य ते त्यांचे काय वर्णू मी, करवी जिवाला वेड सुरू |
देव गुरूंची भक्ति वर्णने, भगवत् प्रेमा येई पुरु |
पदे ऐकता त्यांच्या दरबारी, मनेचि पोहोचतो निमिषभरू |
ऐकत ऐकत ब्रम्हानंदे, उरु माझा येई भरू |
भान विसरूनी रोमांच सुरू, अन् नेत्री घळघळ लोटे नीरु |
वायू उठुनी तन्मय होता, जगद्भास तत्क्षणि विसरू |
अवधूताचा अवतार तो, शरण मी जाता होई गुरू |
कृपे त्यांच्या सहजि वाटते, तरीन मी हा संसार पुरू |
म्हणुनि मी त्यांसी नित्य स्मरु, श्री माणिक प्रभुंसी नित्य स्मरु |
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श्री माणिक प्रभु दत्त दिगंबर | निर्गुण निराकार झाला साकार |
वसतसे श्री माणिक नगर | ध्या हो पवित्र त्यां चरणांवर |
भाव मनींचा जाणितसे तो | ह्रदयांतरी जागृत असे जो |
स्मरण करिता दिसतसे समोर | ध्या हो पवित्र त्यां चरणांवर |
आम्ही विसरलो त्यांसी खास | नच तो विसरला आम्हांस |
रक्षक तो जन्मजन्मांतर | ध्या हो पवित्र त्यां चरणांवर |
गुंतलो आपण या संसारा | मायेच्या त्या अमित पसारा |
सोडवाया तो उभा समोर | ध्या हो पवित्र त्यां चरणांवर |
सुखदु:खाचे अनेक चटके | प्रारब्धाचे अनंत फटके |
रडता आपण माय समोर | ध्या हो पवित्र त्यां चरणांवर |
पडता रडता माय ती येउनि | बाळ तो मज कुशीत उचलुनि |
आनंदुनि मी खदखद हसता | मुके घेता मूक मी होता |
अश्रू जल अन् प्रेम ते भरिता | पवित्र चरणांवर मी त्या नमिता |
माय कुशी त्या निवांत रमता | आत्मानंदी निजलो त्वरिता |
श्री माणिक मज कृपा ओपिता | श्री माणिक मज कृपा ओपिता |
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श्रीगुरू माणिक जय गुरू माणिक | न लगे काही मंत्र तो आणिक |
गाता अखंड दिवसागणिक | प्रेम वाढीतसे चरणी माणिक |
गाता गाता तल्लीन होता | माणिक नगरी वार्ता जाता |
सत्वर तो उठुनी ताता | अंगिकारी तुम्हा त्वरिता |
कृपाकर मस्तकी पडता | आनंदाचे येई भरिता |
लागे डोलू नाचू त्वरिता | आत्मानंदी त्या हो बुडता |
रोम रोम तो ते मग गाता | भान न उरते काही आणिक |
क्षणोक्षणी ध्वनि न आणिक | श्री गुरू माणिक | जय गुरू माणिक |
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येई श्री गुरू माणिका | धाऊनिया ताता |
कृपाबळे आता | मज सोडवी त्वरिता |
संसारी बुडता | मायाजाळे फसता |
खोल खोल रुतता | गळा दाटला आता |
नक्र गजेंद्री धरिता | धावलासी त्वरिता |
लवकरी धाव आता | मज सोडवी त्वरिता |
आधार न दुजा दिसता | आळवू कुणा आता |
तूचि जन्मोजन्मि रक्षिता | का विसरलासी आता |
जन्मजन्मांच्या ह्या खेळा | कंटाळलो पुरता |
काढी बाहेरी त्वरिता | अंगिकारी मज तू आता |
वचन तुजसी ताता | न गुंते मी परता |
नश्वर सुखाकरता | या वासनेच्या गुंता |
राख ब्रीद पतित पावना | मज आण माझ्या वचना |
तुज अवधूत चरणा | मी पूर्णपणे शरणा |
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वीणा गाते माणिक माणिक | भक्ता मुखी काही न आणिक |
एकतानता त्या ती येता | तो ही माणिक सर्व ही माणिक |
माया झाली भूतचि आणिक | भविष्या न उरला अर्थ तो आणिक |
प्रारब्धाचे सुटले गणित | गाता गाता श्री गुरू माणिक |
देहभोगाचे दु:ख ना आणिक | आत्मरूपी तार झंकारत |
ऐकू येतो अखंड मग तो | गुंजारव त्या देह वीणेचा |
श्री गुरू माणिक जय गुरू माणिक | श्री गुरू माणिक जय गुरू माणिक |
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माणिक नगरी अवधूत दिगंबर | नाद गर्जती दत्त दिगंबर |
सुरवरांची दाटी जाहली | भरले दिसे पूर्णचि अंबर |
सिद्धराज सिंहासनी बैसले | दूरदूरचे भक्त पातले |
दिंड्या पताका खांद्यावर | नाद गर्जतो दत्त दिगंबर |
माणिक नगरीचा तो हा राजा | सिद्धांचा तो हा राजा |
वाढदिवशी जमली सारी | दर्शनासी भक्त प्रजा |
नाचत नाचत पुढे येती | चरणांवर त्या शीर ठेविती |
धन्य धन्य ते मनी गाती | दत्त दिगंबर दत्त दिगंबर |
कृपादृष्टी ती प्रेमळ केवळ | करूणेची त्यासी ती झालर |
पडता ती भक्त तनांवर | रोमरंध्रे ही गाती अनावर |
दत्त दिगंबर दत्त दिगंबर | दत्त दिगंबर दत्त दिगंबर |
मी तो तेथे ढाळीत चवरी | उभा असे त्यांचे सामोरी |
अवचित मजकडे नजर ती वळता | दिसला मजसी सिंहासनी तो |
सिद्धराज न दत्त दिगंबर | मुर्छा येउनि पडलो चरणांवर |
पडता पडता नाद ऐकला | दत्त दिगंबर दत्त दिगंबर |
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या माणिकाच्या दारी | सर्व सुखाच्या लहरी |
स्पर्शिताती सत्वरि | म्हणुनी धावा लवकरी |
यतिरूपधारी दत्ताच्या दरबारी | सर्व सुखे उभी | हात जोडोनि सामोरी |
द्यावया भक्ता ती सत्वरि | बैसलासे सिंहासनी | तो उभावुनि करी |
धावा धावा नमा त्या चरणांवरी |
शरणागता सांभाळण्याची त्याची रीत असे न्यारी |
निजवुनी जगदाभासी, प्रारब्ध तो जाळी | अन् संपताची त्वरिती, जागृत करी त्यासी | तेणे त्या निद्रितासी, जसे की आभासी प्रारब्ध भोग त्यासी |
दु:ख स्पर्श न कधी त्यासी | दुःखरूपी जगतात, निद्रिस्त करी त्यासी | अन् आत्मसुखाच्या जागृतीत अखंड ठेवी त्यासी | जाणा अवधूताच्या त्या लीला | शरण जा माणिकाला | श्री गुरू माणिकाला |
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माणिक नगरीचा औदुंबर | कथा त्याची मनोहर |
तळी वसतसे दत्त दिगंबर | दर्शना जा राहा तत्पर |
प्रदक्षिणा करा भावे | चरणी डोई मनोभावे |
उद्धरण्यासी उभा सत्वर | यतिराज दत्त दिगंबर |
प्रदक्षिणा फिरता फिरता | नाम माणिकाचे गाता |
सत्वर दु:ख चिंता हरता | आनंदाच्या लहरी उठता |
हाचि जाणा आशिर्वाद आता | प्रदक्षिणा करता त्यां रमता |
नमूया भावे माणिक ताता | अवधूत दिगंबर श्री गुरू दत्ता |
माणिक नगरी औदुंबर तळी | असे जो नित्य वसता | असे जो नित्य वसता |
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चाळकापुरी हनुमान | पुजिती माणिक प्रभु महान |
शमवी भक्तांचा तो काम | गाता पवित्र त्याचे नाम |
अंगी वसे शक्ति महान | उडवी षड् रिपुंची दाणादाण |
वैराग्य शेंदुर कवच अभेद | माया करू न शके ज्या भेद |
मग आत्मरुपी अभेद | त्या हनुमंताची ती भेट |
श्री माणिक प्रभुंशी थेट | श्री माणिक प्रभुंशी थेट |
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श्री व्यंकम्मा देवी भगवती | माणिक शिवाची ती निजशक्ति |
निर्मळ असे जीची मति | आणि अपार सारी महती |
भेटी होता माणिक यति | विसरली न केवळ नाती गोती |
पूर्ण विसरली देहभाव स्थिती | अखंड रमली आत्मजागृती |
जाणुनी तळमळ अंतर्स्थिति | श्री गुरू कैसे कृपा ओपिती |
गुरूशिष्य ऐक्याची ती ही स्थिती | देखिली असे सारे जगती |
लाभण्या अशी ऐक्यस्थिती | तळमळ अन् निर्मळ मति |
नित्या पूजा हो देवी भगवती | श्री व्यंकम्मा देवी भगवती |
हृदयी वसे श्री माणिक यति | अशी कृपेच्या तिची महती |
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माणिक नगरी समाधि मनोहर | रूप ज्याचे मनोहर | वेश अति मनोहर |
अवधूत दिगंबर | माणिकाचा अवतार | वसे त्या गादीवर | जसा की ज्ञानेश्वर | स्तोत्रे कवने संस्कृत अपार | भाव मनी अपरंपार |
अनंत जनांचा करुनिया उद्धार | समाधिस्थ सत्वर |
असा हा अवतार | अवधूत दिगंबर |
प्रभु श्री माणिक मनोहर | प्रभु श्री माणिक मनोहर |
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माणिक नगरी अन्नपूर्णा | स्थापितसे माणिक राणा |
खजिना जिचा भरला पूर्णा | लुटण्या तुम्ही सारे यां ना |
येउनि इच्छा करा नाना | त्वरितची पावा सर्वचि पूर्णा |
काहीच ना राही अपूर्णा | आशिर्वाद असे त्या राणा |
मात्र तुम्ही ती परीक्षा जाणा | पाहुनि हासतसे राणा |
हवा मी की आणिक जाणा | मायेचा तो मोह ओलांडाना |
मग तो करी जादू न्यारी | इच्छितांची इच्छाच हरी |
निरीच्छ होता मग तो राही | ब्रम्हानंदी रमला की पूर्णा |
काहीच नाही तया अपूर्णा | ध्याता केवळ माणिक चरणा |
पवित्र त्या माणिक चरणा |
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माणिक नगरी गादी दत्ताची | स्थापिली श्री माणिक प्रभुंनी |
सगुण त्या अवधूताची | असे गादी ती निर्गुणीची |
शक्ति एकवटली ब्रम्हांडीची | हरण्या दु:खे प्रभु भक्तांची |
आत्मपथावर मार्गदर्शना | बैसली स्वारी दत्तप्रभुंची |
संसार परमार्थ दोन्ही पेलण्या | गादी समर्थ सद्गुरुंची |
जाता तेथे प्रणाम करता | दिसली स्वारी दत्तप्रभुंची |
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बाभईच्या चोगले राम मंदिरात | रंगला सप्ताह वेदान्त |
प्रभुंचे जमले भक्त अनंत | भजन पूजन करण्या नित्य |
मंदिर पवित्र श्रीरामाचे | बैसलाही हनुमान तेथे |
विटेवरी विट्ठल नित्य उभासे | गाभार्यात स्थानही शिवाचे |
सात दिवस जमला मेळा | दूरदूरच्या प्रभु भक्तांचा |
गजर अखंड नाद वीणेचा | श्री गुरू माणिक जय गुरू माणिक, संगे त्या नाम घोषाचा | अखंड वास सात दिवस तो | तेथे दिसला दत्त गुरुंचा, माणिक यति श्री सिद्धराजांचा |
कोट टोपी दोन्ही मखमली | जरतारी बुट्टी त्यांवरी |
हाती काठी नक्षीदारी | ध्यान दिसे ते किती अति सुंदर | मूर्ती भक्ता मनी ठसली खोलवर |
दिवसभर ती रिघ भक्तांची | दर्शन घेण्या सिद्ध यतिंची | फळे फुले खारका अर्पिती | चरणांवर त्या शीर ठेविती | आर्शिवाद कृपाहस्त लाभती | खारकांचा प्रसाद लाधती | क्षणभर ते विसरूनी भान | भान येता धन्य मानिती |
रात्री रोज भजना रंग | आनंदराज गाती अभंग |
भक्त भजनी हो सारे दंग | ताल वाद्यांचा मधुर संग |
भजनामध्ये रंगत रंगत | तालवाद्यांची न्यारी संगत |
सिद्धराज ब्रम्हानंदी डोलत | भक्तही त्त्यांसवे नाचत डोलत |
सात दिवस खेळ अनुपम | भक्ता मनी आनंद अमाप |
शेवटी प्रभुंच्या दिंडीचा बेत | गावातुनी फिरवण्यात मिरवणूक |
पहा प्रभुंची दिंडी निघाली | भक्तांनी वरी छत्रे धरिलि |
दिंड्यापताका वाद्ये गर्जिलि | भक्तांमुखी पदे उमटली |
घरोघरी आनंदाला न मिती | प्रभु घरा येती हेचि चित्ती |
औक्षणाचे ताट हाती | घेऊनी दारी उभ्या सुवासिनी अति |
आली आली, स्वारी पातली | लगबग घरी एकची उडली |
सर्वची स्वागता सामोरे जाती | दूधपाण्याचा कलश घेऊनी | सुवासिनी प्रभुंचे चरण प्रक्षाळिती | चरण तीर्थाची त्या किती महती | लावुनि टिळा घालुनि हार | प्रभुंसी नंतर औक्षण करिती | पेढे बर्फी विविध मिठाया, प्रभुसी अर्पुनी चरणी मग ते शीर ठेविती | प्रभुचरणींच्या त्या पावन स्पर्शे, अवधूताच्या पावन स्पर्शे त्वरितची ते भान हरपती | खारका रूपे प्रभुंचा प्रसाद लाधती | घरोघरींची हीच स्थिति | पूर्ण गाव प्रभु स्पर्शाने पावन करूनी दिंडी मग मंदिरात परतती | द्वारी टांगली असे ती हंडी | प्रभु हस्ते ती त्यांनी फोडीली | प्रसाद लुटण्या सत्वर उसळली | अलोट गर्दी भक्त जनांची | मग प्रभु बैसले सिंहासनी | शेवटचा दिन जाणुनि, भक्त झाले खिन्न मनी | सात दिसांचा अनुपम सोहळा | वाटे सर्वांना न संपावा मनी | जाणुनि अंतर प्रभु आशीर्वाद अर्पिती | “ज्या ज्या घरी प्रभु पाद पूजिले, त्या त्या घरी मज निवास नित्य, ऐका सांगे मी हे सत्य | लाभुनि माणिक कृपा अमित | चित्ती राहा तुम्ही निश्चिंत” |
आशिर्वच हे ऐकता कानी भक्त मनी अत्यंत हर्षित |
परतता गृही धन्य मनी अन् गाती मुखी जप न आणिक |
श्री गुरू माणिक जय गुरू माणिक | श्री गुरू माणिक जय गुरू माणिक |
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माणिक प्रभुंचा भरला दरबार, भगवंताचा तेथ पुकार
भजने रंगली अति अपार, भजनी दंग झाले अपार
भक्त डोलती दत्त डोलती, आनंदाला उधाण अपार
श्री गुरु माणिक जय गुरु माणिक, संगे वाद्ये गर्जती अपार
कृष्णदास हा रमता तेथ, आनंदा ना पारावार
माणिक गुरुंसी शरण जाता, लाधलासे प्रभु कृपा अपार
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श्री गुरु माणिकाss, श्री गुरु माणिकाss
दत्ता, न भजे मी आणिकाss, दत्ता, न भजे मी आणिकाss
माणिक नगरीच्या मज ताता, दुजी न तुजसम प्रेमळ माता
दरबारी तव सिंहासनी तुज, देखता, हरली देह वार्ताss
रूप मनोहर नृपसम देखता, विसरलो भान आताss
श्री गुरु माणिकाss, श्री गुरु माणिकाss
तव गुण कीर्ति मुखी गाता, तव नामाचे प्रेम लागता, नुरली संसारचिंताss
श्री गुरु माणिकाss, श्री गुरु माणिकाss
दत्तप्रभू अवतार प्रभु तू, त्रैलोक्याचा स्वामी प्रभु तू, लक्षिसी निजभक्ताची चिंताss
श्री गुरु माणिकाss, श्री गुरु माणिकाss
कृष्णदास तुज शरण जाता, धरिसी त्या हाता, कृपे उद्धरिसी त्वरिताss
श्री गुरु माणिकाss, श्री गुरु माणिकाss
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श्री गुरु माणिक जय गुरु माणिक, ध्यानी मनी ना दुजा आणिक
कृपे त्याच्या नाही गणित, भावासी नच भुलतो आणिक
सर्वही रुपे भरली ज्यात, साकारली जी रुपे माणिक
भावचि एक तो भजना त्याच्या, लागत नाही काही आणिक
भावे भजता प्रसन्ना होता, नुरे चिंता भीती आणिक
कृष्णदास ना जपतो आणिक, श्री गुरु माणिक जय गुरु माणिक
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प्रभु याs होs प्रभु याs होs, भक्ताss दर्शन तुम्ही द्याs होs, प्रभु याs होs प्रभु याs होs
दरबारी तव जमले सगळे, ध्याती गाती रूप आगळे
दर्शन करण्या नेत्र आतुरले, नका, उशीर अता करू होss
प्रभु याs होs प्रभु याs होs
दृष्टी कृपेची तव ही पडता, रूप मनोहर दृष्टी पडता
पदकमलांवर शिर ठेविता, धन्य, जीवन होईल होss
प्रभु याs होs प्रभु याs होs
मागतो तव भक्ति अमला, आशीर्वाद हाचि गमला
कृष्णदास भक्ती त्या रमला, मान्य करुनी घ्या होss
प्रभु याs होs प्रभु याs होs, लवकरी प्रभु याs होs प्रभु याs होs
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प्रभुंचाss माणिकनगरी दरबारss, प्रभुंचाss माणिकनगरी दरबारss
येउनि भक्त करिती पुकारss, प्रभुंचा भक्त करिती पुकारss
अवधूताचा प्रभु अवतार, सगुण झाला निराकार
सिंहासनी त्या बसुनी ऐकतो, भक्तांची ललकारss
प्रभुंचाss माणिकनगरी दरबारss
या हो या हो, सारे या हो, प्रभु दरबारी लवकरी या हो
दर्शन करुनी चरणी नमिता, प्रभु करतील उद्धारss
प्रभुंचाss माणिकनगरी दरबारss
प्रभुंच्या दरबारी जो गेला, प्रभुचरणांसी शरण जाहला
श्री गुरु माणिक जय गुरु माणिक, अंतरी, उठेल त्या ललकारss
प्रभुंचाss माणिकनगरी दरबारss
प्रभुरायाचे रूप मनोहर, अनुपम सुंदर अति अति सुंदर
फकीर अवधूत नृपसम गुरुवर, देखता, उठेल भाव अपारss
प्रभुंचाss माणिकनगरी दरबारss
भाव विभोर त्या स्थिति रमता, हृदयी प्रभुंचे नाम स्फुरता
कृष्णदास निजानंदी रमता, गमली, प्रभु कृपाचि ती अपारss
प्रभुंचाss माणिकनगरी दरबारss
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भावे भजा माणिकss, भावे भजा माणिकss
प्रेम भजा माणिकss, भावे भजा माणिकss
श्री गुरु माणिकss, जय गुरु माणिकss
न करा चिंता आणिक, भावे भजा माणिकss
विसरशील दुःख भान तू या, संसारी क्षणिक ….
प्रेम जडता रुचेल तुजसी, काही ना आणिक ….
रूप मनोहर दर्शन करता सुचेल, दुजे ना आणिक …
नामाची त्या रूचि चाखता, रुचेल ना आणिक …
कृष्णदास ना भजतो आणिक, मुखी त्याच्या श्री गुरु माणिक
भजतो भावे माणिक, भजतो श्री गुरु माणिकss …
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आईये एक बार, प्रभु बैठा है दरबार
सुनकर आपकी गुहार, करेंगे दु:खोंका परिहार
वो अवधूत निराकार, आपके लिए हुआ है साकार
यह होगा नही बार बार, मत गमाओ घडी इस बार
कृष्णदास करे पुकार, जाईये प्रभु के दरबार, एक बार, केवल एक बार
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प्रभु कृपा की ना सीमा, भज तू माणिक गुरुनामा
श्री गुरु माणिक जय गुरु माणिक, गावो हर पल तुम यह नामा
मनी जो चाहत वह तुम पावत, कृपा करे जब दत्त अवधूत
भाव ही कारन भाव हो कारन, भाव के कारन प्रभु है पावत
निसदिन प्रभु, नाम जो गावत, हर पल प्रभु की छाया पावत
कृष्णदास प्रभु नाम जो गावत, ह्रदय प्रभु का वास है पावत
निसदिन हर पल, प्रभुजी उसपर, है असीम कृपा बरसावत
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अलख निरंजन श्री गुरु माणिक, अलख निरंजन जय गुरु माणिक
नौ नाथ करे प्रभु पुकार, बैठे सभी प्रभु के दरबार
आइए जी प्रभुजी आवो, दर्शन देना एक बार
अवधूत तुम निराकार जो, माणिक नगरी हुए साकार
दर्शन देना एक बार, नौ ही नाथ करे पुकार
धरती माता करे पुकार, सब जग भया अंधियार
जगह जगह पे अनाचार, भगत सब चाहे छुटकार
करना है यह कार्य अपार, चाहिए प्रभु की कृपा अपार
प्रभुजी आवो दर्शन देना, चरनोंपर हमें सिर है रखना
आशीर्वाद है हमें पाना, जिससे यह कार्य है होना
आशीर्वाद जब तक ना पाए, कार्य यह कैसे कर पाए
नौ ही नाथ साथ में गाए, करिए बिनती अब स्वीकार
आये आये प्रभुजी आये, दरबार में त्वरित पधारे
अलख निरंजन अलख निरंजन, नाथोंने की जोर पुकार
प्रभुचरननपर निज सिर रखकर, नाथोंने प्रभु से की गुहार
ख़ुशी से बोले प्रभुजी हँसकर, आशीर्वाद है तुम्हे अपार
जाओ जाओ शुरू हो जाओ, मिलेगी तुम्हे सफलता अपार
नाथ खुश हुए आदेश पाकर, चल पडे वह यह संसार
माणिक प्रभु का यह दरबार, जहा सुन ली जाये सबकी गुहार
बिनती सबकी हो स्वीकार, कृष्णदास को प्रभु करे स्वीकार
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माणिक प्रभु के दरबार में जो शक्स एक बार गया
लौटते वक्त वो खुद उसी का ना रह गया
वाह देखो यह क्या चमत्कार हो गया
नर था जाते समय, आते वक्त नारायण बन गया
असीम कृपा प्रभु की पाकर, जीवन सफल हो गया
कृष्णदास दरबार में जाकर, केवल प्रभुमय बन गया
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— सर्व रचना © कृष्णदास
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