जीवनयोगिनी विमला ठकार- दीदी माँ
** जीवनयोगिनी विमलाजी – दीदी माँ **
अबू पहाड पवित्र | रम्य सुंदर परिसर |
व्यासांनीही माहात्म्य | त्याचे वर्णिले अपार |
तेथे असे शिव कुटी | विमलेची हो ती कुटी |
हिमालयस्थ जणू | शिवाची हो ती कुटी |
तीन वाजताची ठरलीसे | दीदी माँ ची माझी भेटी |
कुतूहल मनी | विविध विचार दाटती |
प्रवेशिताच आत | स्पर्शे भाव घनीभूत |
‘पावसी’चा च भास |प्रत्यय मजसी हो येत |
मूर्ती प्रेमळ ती धीट | खुर्ची बसलेली नीट |
दृष्टी कृष्णमुर्तींची थेट | दर्शनी होय मी विस्मित |
ज्ञानेश्वर, अरविंद, कृष्णमूर्ती अन् दादा, अनेक आठवणी दाटत |
राजकारण्यांच्याही गोष्टी सवे काही काही त्या होत |
विचार अति सुस्पष्ट अन् आवाज खणखणीत |
आत्मानुसंधानाची भक्ति | उलगडे सोप्या शब्दांत |
साधेपणा जीवनाचा होय त्या कुटीत प्रतित |
अंजली, वीणा, शिल्पा कन्या असती नित्य सेवेत |
पुस्तकेही काही वाचण्या, मजसी दीदी भेट देत|
कृपाशिर्वाद घेवोनिया | दीदी माँ चा निरोप घेत |
पाऊण तासांची ही भेट | कधी संपली ना ध्यानात |
जीवन योगिनीची ही | अशी अविस्मरणीय भेट |
राहे अखंड मनात | वाटे धन्य मी मनात !
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— १९ फेब्रुवारी २००९
** जीवनयोगिनी भावसुमनांजलि **
जाऊ कसा मी अबूला | न दिसेल माता मजला |
प्रवेशु कसा शिवकुटीला | दीदी माँ न दिसती मजला |
न दिसेल या नयनाला | जीवनयोगिनी परत अशी विमला |
विचारही न पटे मनाला | कल्पिता रित्या शिवकुटीला |
साधका दीपस्तंभ अबूला |आज असे तो ढासळला |
आठवणींचा डोह उसळला | दर्शना द्विवार मजला |
मूर्ती प्रेममय सबला | शोभती कन्या ज्ञानेशाला |
जाणिले न कोणी तिजला | गुप्त तिच्या कार्याला |
साधका बोध जीवनाला | करितसे धन्य जीवनाला |
अंतरी पवित्र करण्याला | गंगाजळ जी ही विमला |
विचार येतो मजला | हा ओघ अवचिता आटला |
न करवते कल्पना मजला | वीणा शिल्पा अंजलीला |
ज्या नित्य सादर सेवेला | कोण जाणी दु:खी ह्रदयाला |
न कळेचि ह्रदयी मजला | कसे करू सांत्वनाला |
आवरिले स्वत: मी मजला | जागृत झाल्या विवेकाला |
मग खूण कळली मनाला | न गेली सोडूनि माता मजला |
दृष्यातुनी जरी परतली | अदृश्य बैसली मम ह्रदयाला |
मी अखंड जपेन तिजला | ह्रदयी माता जणू मम बाळाला |
सामर्थ्य कळले आज मजला | शिवकुटीच आज मज ह्रदयाला |
जाऊ कशाला मी अबूला | ह्रदयकुटीत दर्शन नित्य हो मजला |
दीपस्तंभ न तो कोसळला | ब्रम्हांडभरी पसरला |
सत्साधका प्रत्येका जाणवला | प्रवेश निज ह्रदयाला |
दर्शन घडे ज्या ज्या पिंडाला | भेट घडवेल ब्रम्हांडाला |
लाभता विमल कृपेला | अनुभव पिंड ब्रम्हांड ऐक्याला |
दीपस्तंभ खुणावी मजला | चल उठ गाठ ध्येयाला |
प्रेमाशिर्वाद कृपेला | नित्य जपतो मम ह्रदयाला |
नमितो पावन पदकमलांना | नित्य मी माता विमलेला |
मम ह्रदय भाव सरितेला | हा ओघ दाटूनि आला |
प्रवाह अनिवार गमला | कवितारुपे हा प्रकटला |
या भाव सुमन हाराला | अर्पिले आज विमलेला |
तोषिता हास्य विमलेला | पाहुनि गमे धन्य अजि मजला |
— २२ मार्च २००९
** विश्वाकार विमला माता **
विश्वाकार विमला, खुणाविते मजला |
पुसते जीवन मंत्र, कळला का तो तुजला |
मित्रभावे अखंड जो मी, सर्वां सांगितला |
जीवनाची समग्रता, सर्वत्वे अनुभण्याला |
दिव्य सर्व कर्मांनी, ईश्वरा पूजण्याला |
जीवनाभिमुख होऊनि, जीवन जगण्याला |
धरूनि ठेवी निजमनी, ह्या जीवन मंत्राला |
आशीर्वाद अर्पिला मजला, कृतार्थतेने जगण्याला |
आली प्रचित मजसी, सोडिले न माते मजसी |
सूक्ष्मात त्या परतता, अखंड हित मज ती लक्षी |
विश्वाकार माता विमलेला, मी बाळ अखंड लक्षी |
प्रभूचरणा साक्ष ठेवुनी, अलक्षी विमलेला मी लक्षी |
— २२ मार्च २००९
** विश्वाकार विमला माता **
विश्वाकार विमला, जागवते मजला |
ध्येयाप्रत जाण्या, स्फूर्ति ती मजला |
सूक्ष्मात ती परतता, सूक्ष्मरुपे बोधाया |
सूक्ष्मात कार्य करिते, विश्वचेतना बनुनिया |
देहाची खोळ सोडिता, नच बंधन उरले तिजला |
पूर्ण शक्ति स्वातंत्र्ये, लागली बोध कार्याला |
सूक्ष्मातल्या संत लोका, आनंद विमल परतता |
स्वानंद विश्वी पसरविण्या, हुरूप त्यांसी आता |
स्वानंद भान घेता, मज नमन विश्व विमला |
कृपादृष्टी होता, लाभेन भक्ति अमला |
— २३ मार्च २००९
आत्मा विमल | देह विमल |
स्थिति विमल | मति विमल |
बोध विमल | दृष्टी विमल |
गति विमल | कार्य विमल |
माता विमल | पिता विमल |
भगिनी विमल | बंधू विमल |
दृष्य विमल | अदृश्य विमल |
सगुण विमल | निर्गुण विमल |
साकार विमल | निराकार विमल |
विश्व विमल | दर्शन विमल |
वाहिले तिजसी मी | मम ह्रदय पद्मकमल |
— २३ मार्च २००९
विश्वाकार विमला, ब्रम्हांडभरी पसरली |
ह्रदयकुटीत माझ्या | आत्माकार गमली |
दर्शन घडता तिचे | मम शरीर सर्व व्यापिली |
निजरूप खूण दावुनी | निजरुपातच लपली |
— २३ मार्च २००९
दीदी माँ विमलाजी, स्मरतो ध्यानामाजी |
पावन चरणकमला, पूजितो मनामाजी |
घडले दर्शन मजला, शिवकुटी अबूमाजी |
बोध त्यांचा मजला, विविध प्रवचानांमाजी |
कृपादृष्टी मजला, प्रेमळ नेत्रांमाजी |
स्मरणात अखंड मजला, बोल कानांमाजी |
ठेवा सर्व बहुमोला, जपतो हृदयामाजी
तेणेची दर्शन मजला, अखंड दीदी माँ विमलाजी |
— २३ मार्च २००९
विश्वाकार विमला | उपदेशितसे मजला |
आत्मरूप तू सजला | देहभाव वृत्तिसी रमला |
चल जाण निजरुपाला | आत्मरूप स्वरुपाला |
मनी अखंड लक्षी त्याला | साधना हीच जाण मनीला |
विराम त्यासी जरी झाला | जाणीव होता त्वरि धरी त्याला |
जरी अशा रिती अभ्यासिला | अखंड रमशील त्या अनुभवाला |
हा बोध ऐकुनी मजला | आशिर्वाद जणू अर्पिला |
धन्य मजसी मी गमला | वाटते सहजी गाठीन निज ध्येयाला |
— २३ मार्च २००९
विश्वाकार विमला | सुकन्या भारतभू ला |
अरविंदासम योगी | योगिनी की ही विमला |
सोडुनी देशकार्याला | रतली आत्मरुपाला |
सोडुनी स्थुलातले कार्य | झटली आत्मोद्धाराला |
योगी अरविंद जेवी | राहिले पाँडीचेरीला |
योगिनी तशीच ही विमला | राहिली पहाड़ अबूला |
ध्यास असे दोघांही | दिव्य भारतभू करण्याला |
देशभक्ति अन् प्रेमा | नच शब्द वर्णायाला |
आज विश्वाकार दोंही | अविरत खंड न त्या कार्याला |
दीपस्तंभ ते असती | मज दिसती दो बाजूला |
आधारे त्यांच्या मजसी | वाटते सुलभ मम ध्येयाला |
योगी अन् योगिनी ही | अलंकार भारतभू ला |
— २४ मार्च २००९
विश्वाकार विमला | सामर्थ्य कळे ते आज मजला |
दृष्टीस जीव जरी पडला | निजकरे घट्ट धरी त्याला |
आज वदलो या सत्याला | घेतसे त्या अनुभूतिला |
क्षणभरीही न सोडते मजला | माता जणू निजशिशूला |
काय उरले कारण मग मजला | हित अखंड लक्षितसे विमला |
अंतरी उदय शुद्ध भावाला | अंतरीच नमन मज विमला |
— २४ मार्च २००९
विश्वाकार विमला | सोऽहं श्वास गमला |
धरिता सोडीता होते | स्मरण अखंड विमला |
आवागमन जणू होते | ह्रदयकुटी ते ‘शिवकुटी’ला |
स्मरण अखंड असे हो घडते | मज दीदी माँ विमला |
— २४ मार्च २००९
विश्वाकार विमला | सोऽहं श्वास आवागमला |
स: भाव तो विमला | अहम् भाव तो मजला |
धरिता स: रुपाला | अनुभवत असे विमला |
अहम् भाव जरी आला | स्वरूपी ओढीतसे विमला |
सूक्ष्मत्वे माता विमला | करितसे अशा खेळाला |
कृपेच्या अशा रितीला | नमन दीदी माँ विमला |
— २४ मार्च २००९
विश्वाकार विमला | जीवनगाथा विमला |
आदर्शवाद कथिला | जीवनी तोच आचरिला |
बोले तैसा चाले | प्रत्यय दर्शना आला |
सत्यनिष्ठ प्रायोगिकता | मिलाफ सुंदर दिसला |
जीवन असेच जगण्याला | मी आशीर्वाद मागितला |
विमल मातृहृदयाने | मजसी सत्वरचि तो दिधला |
— २४ मार्च २००९
विश्वाकार विमला | राखीतसे वृत्तीला |
आत्म्यावरुनी ढळताचि | परतवितसे तिजला |
ध्यानी बैसता येतसे | हा अनुभव मजला |
सूक्ष्मात ती परतता | काय वर्णू सामर्थ्याला |
— २४ मार्च २००९
— सर्व रचना © कृष्णदास
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